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संविधान को धार्मिक किताब नहीं देश चलाने की निर्देशिका पुस्तक माने

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बिलासपुर, 13 अप्रैल 2025। 
4 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी कार्यालय बिलासपुर में बैठक हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती को भव्य तरीके से मनाया जाएगा। अंबेडकर की प्रतिमाओं की साफ सफाई और सजावट की जाएगी माल्यार्पण किया जाएगा, दीप उत्सव मिष्ठान वितरण और संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया जाएगा। अब यह जगने का समय है। आरएसएस और उससे दिशाज्ञान लेने वाली भाजपा अंबेडकर को मूर्ति फिर भगवान और संविधान को साहित्यिक पाठ की किताब, आस्था की वस्तु बनाने के मार्ग पर चल पड़ी है।
कुछ ही दिन पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री ने संसद में कहा था अंबेडकर अंबेडकर अंबेडकर नाम लेना फैशन हो गया है। जितनी बार अगर राम का नाम ले लेते तो..... अब ऐसी क्या स्थिति आन पड़ी की अंबेडकर जयंती को पार्टी स्तर पर उन तौर तरीकों से मनाया जाएगा जैसे धर्म ग्रंथो में उल्लिखित देवी-देवताओं की जयंती मनाई जाती है। उच्च न्यायलय ने तमिलनाडु के राज्यपाल के मामले में राज्य सरकार की याचिका पर जो फैसला दिया है वह स्पष्ट करता है कि राज्यपाल ने न केवल असंवैधानिक काम और दायित्व के बीच के अंतर को नहीं समझा और अपने इस काम में राष्ट्रपति को भी शामिल कर लिया। तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शपथ कर्ता ने संविधान की बड़ी सी किताब को नतमस्तक किया था और काम लगातार और असंवैधानिक तरीके से करते हैं। इसके पूर्व भी उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार की बर्खास्तगी वाले मामले में कहा था राष्ट्रपति राजा नहीं है उसके कामों की न्यायिक समीक्षा होगी। फिर महाराष्ट्र सरकार की बर्खास्तगी का मामला, ई चुनावी बांड का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने तब भी कहा असंवैधानिक नोटबंदी के ममले में पीठ की एक न्यायमूर्ति ने नोटबंदी पर मनमर्जी को लेकर तीखी टिप्पणी की इन तमाम उदाहरण को बताने का कारण यह है कि संविधान को धार्मिक ग्रंथ बनने से रोके उसके पालन पर जोर होना चाहिए और जो लोग बड़े संवैधानिक पदों पर पहुंचकर इसका पालन न करें उससे जनता को इस्तीफा मांगना चाहिए।