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कारपोरेट अपना मतदाता बेगाना

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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर । केंद्र सरकार ने अपने दोस्तों को लाभान्वित करने के लिए और मात्र 15 हजार करोड़ राजस्व की प्राप्ति के लिए देश की बड़ी जनसंख्या से नाराजगी मोल ले ली, सरकार चाहती तो पुराने कारपोरेट टैक्स को वापस लाकर 1.60 लाख करोड़ रुपए की कमाई कर सकती थी यह 5 फ़ीसदी जीएसटी की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा कर संग्रह होता और जिससे देश का बेहद छोटा वर्ग प्रभावित होता जबकि आटा, दाल, चावल, पेंसिल, नक्शा, बल्ब, अस्पताल का विस्तर जैसी चीजों पर टैक्स लगाकर गरीब मार कर दी गई है। देश में शीर्ष कंपनियों पर लगने वाला कारपोरेट टैक्स 25.17 फ़ीसदी है इसमें विभिन्न सैश सर चार्ज भी शामिल है। कोरोना काल के पहले यही कारपोरेट टैक्स 34.94 फ़ीसदी हुआ करता था जिसे 9.77 फ़ीसदी कम करके केंद्र सरकार ने अपने दोस्तों को राहत दी है। नई कंपनियों पर लगने वाले कारपोरेट टैक्स इससे भी कम लेवल के हैं वहां तो सिर्फ 17.01 फ़ीसदी टैक्स लग रहा है। जबकि पहले यही टैक्स 29.12 फ़ीसदी था यदि सरकार पुराने कारपोरेट टैक्स की वापसी कर देता तो उसे लगभग 1.60 लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त हो जाता। असल में सरकार यह सोच रही थी की कारपोरेट को ज्यादा से ज्यादा छुट दे कर उनसे निवेश कराया जा सकेगा। जबकि कारपोरेट यह सोच रहा था टैक्स में कमी है खूब लाभ कमाओ टैक्स की बचत करो बचत पैसे को निवेश करने की जरूरत नहीं है क्योंकि बाजार में मांग ही नहीं है कोई भी निवेशक बाजार में तभी पैसा लगाता है जब उसे पता होता है कि उत्पादित वस्तु बाजार में बिक जाएगी। लेकिन देश में उपभोक्ता बाजार का जो हाल है उसका निष्कर्ष यही है कि न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर सकने वाले लोग इन दिनों बाजार में खरीदारी नहीं कर रहे हैं उनकी आय का बड़ा हिस्सा न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में ही लग जाता है ऐसे में अन्य वस्तुएं नहीं खरीदी जा सकती और अब सरकार ने उसी वर्ग पर जीएसटी की मार मारी है यह मार रेशम की डोरी से नहीं चाबुक से पडी है।