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बातो का बताशा

काम पर नहीं प्रचार पे भरोसा

24HNBC यह संभवतः पहली बार हो रहा है कि देश की सरकार वास्तविक अर्थों में काम करने की बजाय सिर्फ काम करने का दिखावा कर रही है। काम नहीं हो रहा है, उसका सिर्फ प्रचार हो रहा है। बुनियादी कामों में या लोगों के जीवन के लिए सबसे जरूरी कामों में भी सिर्फ दिखावा हो रहा है। एक तरह से कह सकते हैं कि आभासी काम हो रहा, जिसे सिर्फ प्रचार के जरिए ही जाना जा सकता है। असल में कुछ भी वैसा नहीं हो रहा है, जैसा कहा जा रहा है। इसे हाल की कई खबरों से या घटनाओं से समझा जा सकता है।मिसाल के तौर पर सबसे पहले कोरोना का मामला लिया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से पिछले एक साल से ऐसा दिखाया जा रहा है, जैसे सरकार कोरोना से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है और दुनिया के दूसरे किसी भी देश की सरकार से ज्यादा काम कर रही है। तभी उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि यह तो भला है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, अगर कोई और होता तो पता नहीं क्या हो जाता। यह सिर्फ उनकी धारणा नहीं है, बल्कि आम लोगों में भी यह धारणा बनवाई गई है कि अगर मोदीजी नहीं होते तो कोरोना के इस संकट में पता नहीं क्या हो जाता। इस धारणा में यह बात अंतर्निहित है कि मोदीजी ने कोरोना को रोकने के लिए बहुत काम किया है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम चालू हुआ, जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। प्रधानमंत्री के गृह राज्य में बने इस स्टेडियम में भारत और इंगलैंड के बीच टी-20 क्रिकेट मुकाबले हुए। इसमें दर्शकों के प्रवेश की अनुमति दे दी गई और अगले दिन खबर छपी कि 57 हजार दर्शकों ने लाइव मैच का आनंद लिया। जिन लोगों ने टेलीविजन पर मैच का सीधा प्रसारण देखा वे देख रहे थे कि कैसे दर्शकों की भीड जुटी थी, जिसमें कोरोना के किसी प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा था। दर्शकों के साथ मैच कराने का फैसला तब किया गया, जब राज्य में और पूरे देश में कोरोना वायरस के केसेज बढ़ने लगे थे। सोचें, भाजपा के नियंत्रण वाले राज्य में, भाजपा के नियंत्रण वाले नगर निगम में और भाजपा के नियंत्रण वाले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के निर्देश पर हजारों दर्शकों के साथ मैच कराने का फैसला किया गया। अब स्थिति यह है कि सोमवार को गुजरात में लगातार दूसरे दिन 24 घंटे में डेढ़ हजार से ज्यादा मामले आए। पिछले एक हफ्ते से औसतन एक हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं। जब वायरस के मामले बढ़े तो एक दिन अचानक फैसला किया गया कि अब बिना दर्शकों के मैच होगा।इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 मार्च को देश के मुख्यमंत्रियों के साथ एक वर्चुअल बैठक की, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्रियों को आगाह किया कि वे अपने यहां सावधानी बरतें, कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित कराएं ताकि वायरस को गांवों में फैलने से रोका जा सके। उन्होंने कहा कि अगर कोरोना गांवों में फैला तो मुश्किल होगी। उनकी सरकार के गृह सचिव अजय भल्ला ने राज्यों के मुख्य सचिवों को चिट्ठी लिख कर कहा कि वायरस के मामले बढ़ रहे हैं इसलिए सावधानी बरतने की जरूरत है। मुख्यमंत्रियों को यह निर्देश देने के अगले ही दिन प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल और असम में चुनावी रैली करने पहुंच गए, जिनमें हजारों लोगों की भीड़ जुटी। राज्यों के निर्देश देने के बाद प्रधानमंत्री चार बड़ी रैलियां कर चुके हैं। अब सोचें, किसे हकीकत माना जाए? उनके निर्देश और उनके चिंता जताने को या उनके रैली करने को? जाहिर है कि कोरोना को लेकर चिंता जताना एक दिखावा है और असली चीज चुनावी रैली है।इसे हरिद्वार के कुंभ मेले से भी समझा जा सकता है। कुंभ मेले की शुरुआत हुई तो कई तरह के प्रोटोकॉल लागू किए गए थे। आरटी-पीसीआर टेस्ट अनिवार्य किया गया था, ई-पास लेना अनिवार्य था। लेकिन अचानक ये सारी चीजें शिथिल कर दी गईं और खबर है कि हरिद्वार के कुंभ में अब तक 32 लाख लोग हिस्सा ले चुके हैं। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब तो यही निकलता है कि कोरोना वायरस से लड़ने की बातें, उसे लेकर चिंता जताने की बातें, राज्यों को निर्देश देने की बातें सब दिखावा हैं। लोगों को सिर्फ यह दिखाया जा रहा है कि सरकार कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए काम कर रही है, जबकि असलियत में सरकार वायरस फैलाने का काम कर रही है।यही स्थिति अर्थव्यवस्था को लेकर है। प्रधानमंत्री हर सभा में दावा कर रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है और कोरोना वायरस की महामारी के बीच भी लाखों करोड़ रुपए का निवेश भारत में आया है। हकीकत यह है कि पिछली 13 तिमाही से यानी 39 महीने से देश का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी गिर रही है। कोरोना वायरस का महामारी शुरू होने से पहले लगातार आठ तिमाही में जीडीपी गिरी। आठ से सात, सात से छह, छह से पांच और पांच से चार फीसदी पर जीडीपी पहले ही आ गई थी। उसके बाद यह कोरोना के कारण निगेटिव में गई। करोड़ों लोगों के काम-धंधे बंद हुए हैं, नौकरियां गई हैं, कंपनियां बंद हुई हैं लेकिन धारणा यह बनाई गई है कि अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। हकीकत यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था मार्च 2020 में जिस स्थिति में थी वहां तक पहुंचने में यानी चार फीसदी की विकास दर हासिल करने में भी दो साल लग जाएंगे।यह दिखावा किया जा रहा है कि सरकार गरीबों का भला कर रही है। लेकिन हकीकत में सरकार की नीतियां गरीबी बढ़ा रही हैं। पिछले 30 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि मध्य वर्ग के तीन करोड़ 20 लाख लोग अपनी कमाई औऱ आमदनी गंवा कर निम्न मध्य वर्ग या निम्न वर्ग में शामिल हुए हैं। गरीबों का भला सिर्फ पांच किलो अनाज और एक किलो दाल देकर किया जा रहा है। बाकी असली भलाई देश के चहेते अरबपतियों की हो रही है, जिनकी संपत्ति कोरोना की महामारी में भी बेतहाशा बढ़ी है। पिछले दिनों रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार रेलवे का निजीकरण नहीं करेगी। इसके बाद प्रधानमंत्री का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रहे हैं कि लोगों का रेल से जुड़ाव एक निश्चित उम्र के बाद शुरू होता है, जबकि उनका जन्म के साथ ही रेलवे से जुड़ाव है। उनका जीवन ही रेलवे के कारण बना है इसलिए वे रेलवे का निजीकरण कैसे कर सकते हैं। उनका इशारा रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की ओर था। लेकिन हकीकत क्या है? हकीकत यह है कि सरकार तीन सौ ट्रेनें निजी कंपनियों को चलाने दे रही है, एक-एक करके सैकड़ों स्टेशन निजी हाथों में दिए जा रहे हैं, रेलवे की जमीन निजी कंपनियों को दी जा रही हैं। जाहिर है कि एक योजना के तहत जो कुछ किया जा रहा है, उससे उलटी बात जनता के सामने कही जा रही है और सरकार भरोसे में है कि जो असल में हो रहा है वह जनता के सामने नहीं आएगा