24HNBC सरकार को किसान आंदोलन को बदनाम करने का एक प्रतीक मिल गया है। सरकार आंदोलन शुरू होने के बाद पहले दिन से इसकी तलाश में थी। एक बार आंदोलन में कुछ लोगों ने दिल्ली दंगों के आरोप में गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग के पोस्टर लगा दिए थे तो उस आधार पर आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग का आंदोलन ठहराने का प्रयास भी हुआ था। हालांकि वह अभियान ज्यादा चल नहीं सका क्योंकि किसानों ने खुद ही अगले दिन से ऐसे लोगों को आंदोलन में नहीं आने दिया। सो, सरकार, भाजपा और आईटी सेल को मुद्दा नहीं मिल रहा था। गणतंत्र दिवस के दिन जाने-अनजाने में या किसी साजिश के तहत लाल किले तक कुछ लोग पहुंच गए और वहां निशान साहिब का झंडा फहरा दिया। भाजपा और सरकार ने इससे तिरंगे के अपमान का एक झूठा नैरेटिव गढ़ दिया।हैरानी की बात यह है कि संसद सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी कहा गया कि तिरंगे का अपमान हुआ है और उसके बाद प्रधानमंत्री ने भी मन की बात कार्यक्रम में कहा कि तिरंगे के अपमान से देश दुखी हुआ है। सवाल है कि तिरंगे का अपमान कहां और कैसे हुआ? लाल किले के बिल्कुल ऊपरी कंगूरे पर तिरंगा लगा होता है, जो शान से लहरा रहा था। वहां तक कोई नहीं पहुंचा। किसी ने तिरंगे को हाथ नहीं लगाया उलटे कई लोगों ने वहां खड़े होकर राष्ट्रगान किया। लाल किले के सामने के हिस्से में जो पोल खाली थी उसमें लोगों ने निशान साहिब और किसान यूनियन का झंडा लगा दिया। यह तिरंगे का अपमान कैसे हो गया? ज्यादा से ज्यादा यह कहा जा सकता है कि लाल किले का अपमान किया तो वह बात भाजपा या उसकी सरकार के लोग नहीं कह सकते हैं क्योंकि लाल किला मुगल बादशाह शाहजंहा ने बनवाया है और अभी तक ऐसा कोई ‘सबूत’ भी नहीं मिला है, जिसके दम पर यह कहा जाए कि वहां पहले कोई मंदिर था या किसी हिंदू राजा का महल था।