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देश भक्ति का प्रमाण पत्र जारी करने वाला चैनल और पत्रकारिता की साख
Saturday, 23 Jan 2021 00:00 am
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वक्त बता रहा है कि जो हिम्मत बड़े बड़े मुख्यमंत्री नहीं दिखा पाए वह सबसे जूनियर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिखाई है। अर्णब गोस्वामी किसी मुख्यमंत्री यहां तक की प्रकाश जावड़ेकर जैसे वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री को भी कुछ नहीं समझता था। इसी तरह किसी पत्रकार, मीडिया मालिक को भी कुछ नहीं। यहां तक कि न्यायपालिका को भी कुछ नहीं, तभी उसका यह कहना जाहिर हुआ कि जज खरीद लो! और इन सबसे खतरनाक और शर्मनाक बात यह कि वह पुलवामा में 40 भारतीय सुरक्षाकर्मियों की शहादत पर खुशियां मनाते हुए नजर आया।  किसी की कोई चिन्ता नहीं, दर्द नहीं। सबके लिए अपमानजनक टिप्पणियां, उपहास, अवहेलना का भाव! सबको देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटना और खुद का सुरक्षाकर्मियों की शहादत में लाभ देखना!पत्रकारिता में क्या ऐसा पहले कोई अहंकारी, बदजुबान व्यक्ति देखा  गया?। भाजपा के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के अलावा, किसी की एक नहीं सुनने वाली ममता बनर्जी, कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह जो राहुल गांधी तक की नहीं सुनते थे से लेकर और भी बहुत सारे मुख्यमंत्रियों का अर्णब रोज पुलिसिया अंदाज में इंट्रोगेशन करता था। उसी की  ठसक में उसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे को भी निपटाने की सुपारी ले कर चुनौती दी  थी।लेकिन उद्दव ने बाजी पलट दी। चुप रहते हुए पूरी तरह कानूनी तरीके से, टीआरपी रेटिंग घोटाले के आरोप पत्र में वे लिखित सबूत पेश करके जिसने इन दिनों मीडिया की चूलें हिला रखी हैं। रिपब्लिकन टीवी के अर्नब गोस्वामी और टीआरपी का निर्धारण करने वाली संस्था बार्क के चीफ पार्थों के बीच होने वाली दलाली की व्हाट्सएप चेट लीक होने के साथ मीडिया में भूकंप आ गया है। हालांकि अभी कोई बोलने को तैयार नहीं है मगर मीडिया के सारे दिग्गज इस समय हिले हुए हैं। जिस टीआरपी के दम पर पूरा टीवी बिजनेस खड़ा था उसे अर्नब कैसे मैनेज करता था और उन लोगों के बारे में क्या क्या बोलता था यह देखकर लगभग सभी मीडिया महारथी निश्चित ही हैरान, स्तब्ध होंगे।मीडीया में एक दूसरे की टांग खिंचाई, आलोचना, प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। मगर अर्णब ने सारी हदें पार कर दी थीं। समीर जैन, अरुण पुरी जैसों की कई मुद्दों पर आलोचना हो सकती है और  होती भी रही है।  मगर जिस तरह अर्णब ने सब सीनियर लोगों का व्यक्तिगत अपमान किया है वैसा इससे पहले कभी नहीं देखा गया। इसी तरह राजदीप सरदेसाई, सागरिका घोष और नविका कुमार पर भी कई बेलगाम निर्णयात्मक टिप्पणियां कर की है। सिवाय अपने वह किसी को कुछ नहीं समझ रहा।ऐसे अर्णब को उद्धव ठाकरे सरकार ने जब दो आत्महत्याओं के गंभीर फौजदारी मामले में गिरफ्तार किया तो कई क्षेत्रों से उसे मदद मिली। सुप्रीम कोर्ट से फौरन जमानत मिल गई। लेकिन अब टीआरपी जालसाजी के मामले में उसे शायद ही किसी की सहानुभूति मिले। उसने जिस तरह पूरे सिस्टम को अपने हाथों में लेने का दावा किया है, उसके बाद राजनीति, न्यायपालिका और मीडिया किसी भी क्षेत्र से उसे मदद मिलना आसान नहीं होगा। लोकतंत्र में, सभ्य समाज में, इंडस्ट्री में हर जगह कोई न कोई सीमा होती है। लेकिन अर्णब ने अपने व्यक्तिगत प्रचार के लिए, टीआरपी के लिए सब मर्यादाएं तोड़ दी थीं।बतौर पत्रकार, बतौर मीडियाकर्मी के नाते जो कुछ हुआ है वह हम सबको शर्मसार करने वाला है। जो जाहिर हुआ है उसमें पुलवामा और बालाकोट के वाकिये के पहलू  ज्यादा गंभीर और देश की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। जिनकी जांच केन्द्र सरकार को अलग से करवाना चाहिए। यह बहुत गंभीर बात है कि बालाकोट की एयरस्ट्राइक से पहले अर्णब को खबर थी और वह इस संवेदनशील जानकारी को किसी को दे रहा था। इसी तरह पुलवामा में हमारे जवानों के मारे जाने पर उसका खुश होना बहुत शर्मनाक और गंभीर मामला है। हर किसी को अरबन नक्सल, टुकड़े- टुकड़े गेंग, देशद्रोही कहने वाला अर्णब खुद किस सोच में रहा है इसका पता लगाने के लिए उपयुक्त जांच एजेसियों को मामला सौंपा जाना चाहिए।प्रधानमंत्री मोदी को देखना चाहिए कि वह किस तरह उनके और दूसरे वरिष्ठ मंत्रियों के नाम का कैसा इस्तेमाल कर रहा है।  केन्द्र सरकार की खुद की साख, उसके मंत्रियों के सम्मान के ही खातिर क्या मोदी सरकार को समझना-चेतना नहीं चाहिए?जहा तक मीडिया का सवाल है उसकी विश्वसनीयता वैसे ही खत्म है लेकिन अर्नब के मामले में जैसी जो चर्चा है उससे सभी मीडिया वालों को सोचना चाहिए कि आखिर हम अपनी क्या पतन गाथा बनवा रहे है। मीडिया के सुधी लोगों को सामने आना होगा। अर्णब ने जिन जिन मीडिया वालों के खिलाफ अनाप शनाप बोला है वे अगर जवाब नहीं देंगे तो आम जनता में क्या मैसेज जाएगा? यही कि अर्णब सही है! मीडिया मालिकों और पत्रकारों, एंकरों को समझना चाहिए कि अर्णब गोस्वामी और उनके तौर-तरीकों की हल्लेबाजी से क्या बनेगा?