24hnbc 2 अक्टूबर को धरना देने के पहले पत्रकार संगठन के पदाधिकारी, स्वयं से पूछे गांधी के आदर्शों पर कितनी देर चल सकेंगे
Sunday, 15 Sep 2024 18:00 pm
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बिलासपुर, 16 सितंबर 2024।
पत्रकारिता पर प्रहार, पत्रकारों पर अत्याचार अब बर्दाश्त नहीं और संयुक्त पत्रकार मोर्चा बना है। पत्रकारों को न्याय दिलाने पूरे मामले पर कुछ जरूरी चर्चा होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के संगठनों की, संगठन के पदाधिकारी की और यदि संगठन में सदस्य हैं तो उनकी भी?
रायपुर में 14 सितंबर के दिन पत्रकारों के हितों के लिए बने लगभग 20 संगठन के अध्यक्ष एकत्र हुए और उन्होंने कहा कि अब और प्रहार और अत्याचार बर्दाश्त नहीं। इन दोनों प्रहार शब्द का इस्तेमाल जोर-शोर से किया जा रहा है, समाचार लेखन में यह शब्द ताजा रूप से छत्तीसगढ़ पुलिस की विज्ञप्तियों में हुआ.... निश्चित ही वे इसका प्रयोग अपराधिक तत्वों के कार्यवाही के रूप में करते हैं। राज्य बनने के बाद पत्रकारों ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के संगठन पर ध्यान दिया। हम उसके पूर्व उन संगठनों की बात नहीं करते जो राष्ट्रीय स्तर के किसी संगठन से एफिलिएटेड थे या नहीं थे। पत्रकारों का सबसे चर्चित संगठन श्रमजीवी पत्रकार संगठन मध्य प्रदेश से हटकर छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ हुआ तब मध्य प्रदेश के संगठन अध्यक्ष ने दिखावे वाली छत्तीसगढ़ के सदस्यों की सूची दो सदस्यों को जिन्हें वे कमान देना चाहते थे सौंपी एक को अध्यक्ष दूसरे को महासचिव बना दिया गया।
2001 के बाद 1 वर्ष के भीतर ही नए पत्रकार संगठनों का बनना प्रारंभ हो गया यह वही दौर था जब बाजार में मल्टीलेवल मार्केटिंग का धंधा भी फल फूल रहा था और कई सदस्य खबरों से अधिक काम मल्टी लेवल मार्केटिंग में करते थे। यहीं से वह धारा शुरू हुई जो पत्रकारों के आर्थिक हितों को पत्रकारिता के संदर्भ के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर ढूंढने लगे। तेजी से वह वर्ग भी भरा जो वेतनिक स्तर के अतिरिक्त पत्रकारिता को करता है। मुख्य रूप से ऐसे पत्रकारों की आय संस्था के लिए विज्ञापन से प्राप्त कमीशन और प्रसार से मिलने वाला कमीशन होती है। धीरे-धीरे पत्रकार संगठनों का तेजी से विभाजन और एक नया पंजीयन होने लगा। सबको अपनी गाड़ी पर प्रदेश अध्यक्ष और महासचिव की तख्ती चाहिए, कारण यही है कि जो भी व्यक्ति स्वयं को पत्रकार कहते हुए संगठन का पंजीयन करता है वह आजीवन अध्यक्ष बने रहना चाहता है। अध्यक्ष से कम उसे मंजूर नहीं। मेरा खेत मेरी फसल मैं ही खाऊंगा यह ऐसा भाव है जो छूटता ही नहीं। संगठनों में साधारण सदस्य कम पदाधिकारी ज्यादा होते गए।
ऐसे पत्रकार जो सही मायनों में रोज खबरों पर काम करते हैं वे किसी भी संगठन की सदस्यता लेने से घबराते हैं। करण संगठन के पदाधिकारी वास्तविक पत्रकारिता से कोसों दूर है। ऐसे में रोज खबरों पर काम करने वाले पत्रकार का स्वाभिमान गवाही नहीं देता की वह अपना नेता उसे मान ले जिसका खबरों से, आलेख, राजनीति, विमर्श या पत्रकारिता की अन्य विद्या से कोई लेना-देना नहीं है। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर प्रशासनिक दबाव हमेशा रहता है। स्वतंत्र, यथा स्थिति समाचार लेखन पत्रकार की अपनी क्षमता पर निर्भर करता है।
किसी भी पत्रकार के लिए सबसे बड़ी मांग या जरूर भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा जिस पर वह घर बना सके और स्वास्थ्य बीमा उसके और उसके परिवार के इन दोनों बिंदुओं पर छत्तीसगढ़ में खूब गड़बड़ियां हुई। ऐसे पत्रकार जो सत्ता के नजदीक रहे जिला मुख्यालय में सरकारी आवास पाते रहें, आजीवन पाये। कोई चाहे तो बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग - भिलाई, कोरबा, रायगढ़ जैसे पुराने जिलों में सूचना का अधिकार आवेदन लगाकर जानकारी प्राप्त कर सकता है। सरकार के पत्रकार कल्याण कोष से लगातार हर साल बीमारी के नाम पर स्वयं या अपने परिवार सदस्यों के लिए बड़ी धनराशि प्राप्त करने वाले पत्रकारों की सूची और उनके द्वारा रोज लिखा जा रहे समाचारों की खोज ही एक शोध प्रबंध का विषय हो सकती है। इतना ही नहीं पत्रकारिता में अमिट पहचान रखने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी पर इस राज्य में पत्रकार संगठनों ने ही क्या नहीं किया ...?
जिस भी जिले में पत्रकार गृह निर्माण सहकारी समिति बनी वहां कितने पत्रकार और कितने कथित पत्रकार लाभान्वित हुए की अलग कहानी है। बस्तर से लेकर राजधानी तक, जयपुर से लेकर न्यायधानी तक जहां कहीं भी खबर लिखने वाले पत्रकार की खबरों से व्यवस्था नाराज होती है उसे प्रताड़ना सहाना पड़ती है। जब कभी भी पत्रकारों का कोई धरना प्रदर्शन होता है और जैसे ही वह समाप्त होता है पता चलता है कि किसे रेत, किसे गिट्टी, किसे कोयला क्या-क्या मिला।
चुनाव की जो हालात अन्य संगठनों में है वे पूरी बुराइयां पत्रकार संगठन, क्लब में भी है। संगठन में तो कभी कोई चुनाव होता ही नहीं कुछ संगठनों में तो सदस्यता शुल्क अलग और पदाधिकारी शुल्क अलग, जहां चुनाव होता है वहां चुनाव लड़ने वाले से उसका खर्च पूछा जा सकता है जो सदस्य वोट देते हैं वे स्वयं जानते हैं कि किसका कितना खर्च हुआ और कौन सा संगठन, समिति कागजों और सहकारी और सरकारी नियमों की कितनी परवाह करते हैं और स्वयं को नियमों से कितना ऊपर मानते हैं। 20 संगठनों के अध्यक्षों ने निर्णय ले लिया 2 अक्टूबर को धरना देंगे अपना मांग पत्र पेश करेंगे। यह तारीख विशेष है किसी पदाधिकारी के मन में बापू के आदर्श के प्रति कितनी श्रद्धा है वे अपने अपने हाथों को सर पर रखकर स्वयं से पूछ लें।