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चाय से केटली ज्यादा गर्म न्यायिक सक्रियता से नहीं सुधरेगी व्यवस्था
Monday, 13 May 2024 18:00 pm
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बिलासपुर, 14 मई 2024।
राज्य भर की सरकारी और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित घोषित अघोषित जिम्मेदारी ऐसा लगता है छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने ले ली है। इस चक्कर में एक छोटी सी कहावत " चाय से ज्यादा गर्म केटली " फिट बैठ रही है। हमारा यह कथन उच्च न्यायालय या जिला प्रशासन के लिए नहीं है उन न्याय मित्रों के लिए है जिन्हें उच्च न्यायालय ने निरीक्षण की जिम्मेदारी दी है। अधिवक्ता, व्यवहार संहिता, न्याय संहिता, कंपनी ला, टेक्स, सर्विस मैटर के कानूनी विशेषज्ञ हो सकते हैं, पर मेडिकल, पुनर्वास, मानसिक रुगुणता, मेंटल रेटारडेशन की समस्या और निदान को समझना इन विषय के विशेषज्ञों का ही काम है। पर भारतीय प्रशासनिक ढांचे में इस तरह आईएएस सब कुछ कर सकता है इस तरह न्यायालय का न्याय मित्र सब कुछ कर सकता है। वह ओमिनी की भूमिका में आ जाता है वह सर्वज्ञ है, सर्व विषय विशेषज्ञ है। उच्च न्यायालय के लाख प्रयास के बाद सिम्स नहीं सुधर रहा यह वैसा ही है। जैसे प्रकरणों की अधिकता के कारण व्यवहार न्यायालय की स्थिति नहीं सुधरती, जब तक नागरिक संसाधन है तब ठीक है और यदि वे व्यवस्था पर भार बन गए तो ढांचा तो चरमराता ही है। पूरे राज्य में संचालित मंदबुद्धि के लिए घरौंदा योजना के संदर्भ में एक जनहित याचिका इन दिनों चर्चा का विषय है पर यह नहीं समझ आ रहा की कोपाल वाणी जो स्वयं ऐसे ही संस्था चलाती थी वह जनहित की पेरोकार कैसे हो गई। पर न्यायालय ने मान लिया तो हो गई और अब अन्य संस्थाओं द्वारा संचालित घरौंदा यूनिट में केवल समस्या ही उसे दिखाई दे रही है। जबकि इससे ज्यादा अनुदान लेने वाली योजना हॉफ वे होम के भीतर भी बहुत कुछ अनियमितता है। वित्तीय घोटाला है पर उस संस्था को सत्ता का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है तो सब कुछ अच्छा है। 
मंदबुद्धि और मानसिक रूगुणता दो अलग-अलग स्थितियां हैं। एक में मरीज के पूर्ण सुधार की संभावना है दूसरे में ना के बराबर। ऐसे में घरौंदा परियोजना से आउटपुट की उम्मीद नहीं की जा सकती, या केवल मंदबुद्धि को सम्मान के साथ जीने देने की सामाजिक उत्तरदायित्व है। जो लोग इसे मंदबुद्धि के सामान्य बुद्धि हो जाने की कल्पना करते हैं वे गलत है।