24hnbc घरौंदा असल परियोजना किसने की खराब, पीतांबरा और कोपल स्वयं में कितने है पाक-साफ
Sunday, 14 Jan 2024 18:00 pm
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बिलासपुर, 15 जनवरी 2024।
छत्तीसगढ़ राज्य में मंदबुद्धि की कुल संख्या कितनी है। हर साल कितने नए शिशु इस व्याधि से ग्रस्त होकर जन्म लेते हैं। जन्म के कितने समय के भीतर यह पता चलता है कि शिशु मेंटल रिटायर्डेशन के किस वर्ग में आता है। सरकारी निजी स्तर पर ऐसे बच्चों के पहचान के लिए कोई कैंप आयोजित नहीं है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ का मानना है कि वर्ष 2014 के पहले ही छत्तीसगढ़ में लगभग एक लाख मंद बुद्धि 20 वर्ष की आयु वर्ग के अंतर्गत थे। इन दिनों छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका विशेष तौर पर चर्चित है। याचिकाकर्ता कोपल वाणी स्वयं इसी क्षेत्र में कार्यरत एनजीओ है।
हम कोर्ट के किसी दिशा निर्देश न्याय मित्रों की रिपोर्ट की चर्चा नहीं कर रहे हैं। हमारा मूल प्रश्न मंदबुद्धि वर्ग के पुनर्वास पर है और पुनर्वास का काम और उसमें कभी पुनर्वास क्षेत्र के विशेषज्ञ विशेष कर जिन्होंने मंदबुद्धि पुनर्वास क्षेत्र में पढ़ाई की हो, काम किया हो वही हो सकता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में घरौंदा परियोजना के पूर्व भी मंद बुद्धि वर्ग के लिए राज्य सरकार की योजना थी और उस योजना के तहत कार्यरत स्वयं से भी संस्था को अनुदान मिलता था। तब केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकारी और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय से घरौंदा परियोजना बनाई गई। पूर्व की योजनाओं और इस योजना में मूलभूत अंतर यह है कि यह योजना उन लोगों के लिए बनी जिनके स्वास्थ्य में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं लाया जा सकता था। ऐसा हितग्राही जिसे स्वयं कपड़े पहनना सिखा दिया जाए वही क्रांतिकारी परिवर्तन है। यह माना गया कि सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत इन्हें रखा जाए जब तक श्वास है। रहने की व्यवस्था, इलाज की व्यवस्था, पौष्टिक भोजन की व्यवस्था, आसन व्यायाम जरूरत पड़ने पर सामान्य चिकित्सा मुहैया कराई जाए। जब घरौंदा परियोजना छत्तीसगढ़ में आई तब छत्तीसगढ़ के समाज कल्याण विभाग के अधिकारी और कुछ आईएएस अधिकारी राज्य के भीतर निशक्त शोध संस्था का षड्यंत्र कर चुके थे। यह एक पृथक विवादित मामला है जिस पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया और प्रभावित अधिकारी उच्चतम न्यायालय से स्थगन लाए। पूरे राज्य में घरौंदा योजना लागू करने के लिए जो एनजीओ ढूंढे गए उनमें नानन कानन, पीतांबरा पीठ, कोपल वाणी प्रारंभ में चयनित हुए। और यहीं से गड़बड़ी प्रारंभ हुई।
समाज कल्याण विभाग के एक घाघ अधिकारी ने पीतांबरा और नानन के साथ खेल रचा बड़ी धनराशि सीधी दी गई पीतांबरा पीठ ने बिलासपुर जिले में घरौंदा यूनिट डाली मात्र कुछ ही महीना में परियोजना दम तोड़ने लगी। बच्चों को खाने के लाले पड़ गए तत्कालीन कलेक्टर ने बिलासपुर एसडीएम नूतन तवर को जांच अधिकारी बनाया एसडीएम के सामने पहला कर्तव्य मानवीय था हितग्राही की देखभाल के लिए तत्काल एक सक्षम पूर्व का अनुभवी जिसने मंदबुद्धि क्षेत्र में काम किया हो ऐसे एनजीओ को दर्जनों की संख्या में मंदबुद्धि हितग्राहियों की देखभाल करनी थी। एसडीएम साहब अपने काम में सफल हुए और एक अन्य संस्था ने मंदबुद्धि पुरुष महिला का जिम्मेदारी ले ली पर पीतांबरा पीठ मात्र ब्लेक लिस्टेड हुई और उसके अधिकारियों के खिलाफ कोई जांच हुई भी तो रिपोर्ट पता नहीं चलते सूत्र बताते हैं की पीतांबरा पीठ के पदाधिकारी ने नाम बदलकर बिलासपुर के मिशन हॉस्पिटल में एक वृद्ध अवस्था देखभाल केंद्र खोला वहां भी आकस्मिक निधि से 23 लख रुपए प्राप्त किया फिर संस्था बंद कर दी।
शासन ने इस 23 लख रुपए का कोई उपयोगिता प्रमाण पत्र भी प्राप्त नहीं किया। रायपुर की ओर घरौंदा यूनिट, कोपल वाणी के पास थी कहा जाता है कि इस संस्था में एक बड़ी अनियमितता शारीरिक शोषण की शिकायत हुई थी विभागीय जांच में यह सही पाया गया और इस संस्था पर भी ब्लैक लिस्टेड की कार्यवाही अपेक्षित हो गई। समाज कल्याण विभाग में ऊपर स्तर पर तीन अधिकारियों की साथ गांठ है। पानी में मगर मछली जब है जब कभी भी इसके बीच बैर होता है तभी परियोजनाओं की कमियां बाहर आने लगती है। घरौंदा भी एक ऐसा ही मामला है जब मंदबुद्धि क्षेत्र के अनुदान में भी कमीशन खोरी होने लगे योजना के निर्देश प्रारंभ से ही तोड़े मोड़े जाने लगे तब केंद्र शासन के संबंधित विभाग ने छत्तीसगढ़ शासन के घरौंदा परियोजना का पैसा वापस मांगा था पत्राचार के खिलाड़ी कागजों को आज तक घूमते जा रहे हैं छत्तीसगढ़ में यह आम है। इसके पहले महिला बाल विकास विभाग में एचआईवी पीड़ित बच्चों का अपना घर इसी तरह बंद कर दिया गया। बुजुर्गों के डे केयर सेंटर कागजों पर चलाए जाते रहे निशक्त शोध संस्थान में शासन की राशि इस तरह गोल-गोल विभिन्न खातों में की गई जिसकी जांच लाइव एजेंसी सीबीआई मानी गई।