सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े किसी भी शख्स के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत तब तक अपराध के दायरे में नहीं है, जब तक यह टिप्पणी सार्वजनिक स्थान पर अपमानित करने की मंशा से न की गई हो. जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि यह टिप्पणी किसी बाहरी गवाह के समक्ष की जानी चाहिए तभी वह अपराध के दायरे में आती है. पीठ ने कहा कि घर की चारदीवारी के भीतर और बिना किसी गवाह की अनुपस्थिति में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी अपराध नहीं है. इसके लिए टिप्पणी को सार्वजनिक स्थान पर लोगों की उपस्थिति में होना आवश्यक है. बता दें कि पीठ ने यह टिप्पणी उत्तराखंड के स्थानीय निवासी हितेश वर्मा की अपील पर सुनवाई करते हुए की. वर्मा ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज चार्जशीट एवं समन रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया था.