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24hnbc भारतीय दर्शन और आनंद फिल्म कोविड-19 दे रही है बड़ा संदेश
Tuesday, 04 May 2021 18:00 pm
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24 HNBC. बिलासपुर

बिलासपुर । देश की सरकार ने देश को अपने नागरिकों को जिस मुसीबत में डाल दिया है उस वक्त दो चीजें याद आती है पहला भारतीय दर्शन थे 3 वाक्य तमसो माँ ज्योतिर्गमय, असतो माँ सद्गमय और मृत्यो माँ अमृतमगमय। किसे पहले कहा जाए यह चर्चा का विषय नहीं है। इन तीन सूत्र वाक्य के साथ सिनेमा इतिहास की एक ना भुलाने वाली फिल्म को याद करें जिसका नाम था "आनंद" फिल्म के दो मुख्य किरदार थे दोनों चिकित्सा की पढ़ाई में रत एक भूमिका को राजेश खन्ना ने निभाया था और दूसरे को अमिताभ बच्चन ने । कोविड-19 की विपत्ति और केंद्र सरकार द्वारा बुलाई गई आफत की घड़ी में गगनचुंबी छक्के-चौबे देखने से ज्यादा सार्थक है इस फिल्म को देखना । नकारात्मक खबरें ना दिखाएं , गड़ी हुई सार्थक कहानी को पिक्चराइजेशन के साथ न्यूज़ में दिखाएं, यह कहां की पत्रकारिता है। जो घट रहा है जो छुपाया जा रहा है वही तो दिखाना पड़ेगा रोज गिन कर मिलने वाली सांसे से लेकर सुदूर गांव में जहां पर टेस्ट भी नहीं होता और पता ही नहीं चलता की मौत की वजह क्या थी खबर दिखाना असली पत्रकारिता है। अब बात की जाए अस्पतालों के अंदर की अस्पताल में जगह मिल जाना ही बड़ी बात है मरीज स्वस्थ होकर घर चला जाए यह सबसे बड़ी घटना है किंतु उसके पूर्व मरीज के साथ पहुंचे रिश्तेदार बहू, बेटी , बेटा दिन में कितनी बार मरते होंगे यह वही जाने डॉक्टर बड़े व्यावसायिक तरीके से कह सकता है ऑक्सीजन ले आइए हमारे पास नहीं है रेडमेंशिविर इंजेक्शन ले आइए हमारे पास नहीं है अन्यथा अस्पताल बदल दीजिए ।
अस्पताल अब केवल ईट, सीमेंट, लोहे की इमारत हो गई क्योंकि बाकी सामान रुपए पैसों के साथ मरीज और उसके परिवार को लाना है ऐसे में याद आता है आनंद फिल्म का वह चरित्र जिसे यह गवारा नहीं की उसकी जीवन रेखा बढ़ाने के लिए उसके तेज को कम किया जाए । सार तत्व यही है कि जीवन में सार्थकता महत्वपूर्ण है ना कि जीवन की लंबाई और जनता नागरिक गण यह सूत्र वाक्य समझ ले कि राज्य सत्ता उनसे है वह सत्ता से नहीं और इस जंग के बाद जो बचे हुए मतदान केंद्र में जब भी लाइन में लगे और बटन दबाएं तो याद करें की एक-एक सांस के लिए, एक एक दवा के लिए हमें किस तरह दर्शाया गया था फिर बटन दबाएं।