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हिसाब तो कर्म का होगा धर्म का नहीं, कट्टरता किसी भी मायने में अच्छी नहीं कही जा सकती

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समाचार -
बिलासपुर, 20 मार्च 2023। रायपुर कि धर्म सभा में जूना अखाड़े के प्रमुख अवधेशानंद गिरी ने जो कहा है उसे हम इनवर्टेड कामा में लिख रहे हैं उसके बाद ही अन्य विषय को भारत के हिंदू राष्ट्र बनने ना बने पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा ""विश्व में अगर शांति और रामराज चाहिए तो हिंदू को कट्टर होना पड़ेगा जिस दिन हिंदू कट्टर हो गया उस दिन विश्व में शांति हो जाएगी"" इन दिनों भारत में कट्टरता के कई स्थान दिखाई देते हैं यहां तक की कट्टर इमानदार कट्टर देशभक्त जैसे विशेषण भी नेताओं द्वारा उपयोग किए गए ऐसे में अवधेशानंद कट्टर हिंदू की बात कर रहे हैं। भारतीय जनमानस में गोस्वामी तुलसीदास का बड़ा प्रभाव है उनके एक दोहे में कहा गया है कहा गया है कि संत के हृदय को नवनीत के समान होना चाहिए कल रायपुर में जो 200 संत एकत्र हुए हिंदू राष्ट्र हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए उनमें से कितने तुलसीदास के दोहे पर खरे उतरते हैं। भारत में 1947 की स्वतंत्रता के बाद संविधान बना और भारत की जनता ने उसे संविधान को अंगीकार किया जिस पर चलकर हमने अब तक की प्रगति नैतिक मूल्य और समाज का निर्माण किया है। कुछ दिनों से बार-बार बार-बार यह यह बताया जा रहा है कि भारत विश्व गुरु है। असल में जिस तरह से चला जा रहा है विश्व गुरु का तो पता नहीं पर विष गुरु बनने की राह में हमारी प्रगति और उसमें लगा मानव संसाधन दिखाएं दिखाई देता है। बाकी देश के प्राथमिक स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा संस्थान तक बगैर गुरु के ही ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कल जो कुछ हुआ उसे उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता हल्के में नहीं लिया जा सकता। हिंदू राष्ट्र का संकल्प के पूर्व जंगल वाले क्षेत्र में किस तरह सुनियोजित तरीके से दूसरे धर्म के उपासना स्थल को तोड़ा गया यदि पुलिस ने धैर्य नहीं रखा होता तो छत्तीसगढ़ की शांति उसी दिन खतरे में पड़ जाती और यही तो यह कथित संगठन चाहते हैं। सब कुछ एक चुनाव जीतने के लिए रचा जा रहा खेल है। यदि सरकार में और उसके मुख्य में जरा भी नैतिकता होती तो उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के बाद चुनाव आयोग को बदल दिया जाता जिस फैसले में कहा गया कि आयोग में सदस्यों की नियुक्ति का तरीका गलत है और नियुक्ति कैसे होगी इसका तरीका बताया गया पर हमारे निर्वाचित प्रधान सेवक में यह हिम्मत नहीं इसलिए वे और उनके साथी उसी दिन से न्यायपालिका पर टीका टिप्पणी और अब धमकाने के हद तक आ गए। लोकतंत्र में एक बड़ी बात है कि संसद बनती तो बहुमत के बल पर है पर जलती है परस्पर सहयोग और विश्वास से इन दिनों उच्च सदन और निम्न सदन दोनों में यह सहयोग और परस्पर विश्वास गायब होता जा रहा है। हम भले ही स्वतंत्रता का अमृत काल मनाने की बात करते हैं पर हम अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को समाप्त करने पर जुटे हुए हैं। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका तीनों संविधान के गर्भ में पैदा होती है, इसलिए संविधान और जनता संप्रभु है। जनता नहीं संविधान को बनाकर अपने ऊपर लागू किया है न्यायपालिका की भूमिका यही है कि उसे सट्टा पर नजर रखनी है की संविधान का पालन हो। कल अवधेशानंद ने एक और बात कही उन्होंने कहा कि जापान में पैदा होने वाला जापानी, अमेरिका में पैदा होने वाला अमेरिकन तो हिंदुस्तान में पैदा होने वाला हिंदू क्यों नहीं हम इतना ही कहते हैं कि मैं तो भारत में पैदा हुआ और भारतीय हूं। मैंने जनगणना के फार्म पर गर्व से लिखा है भारतीय यदि अन्य लोग भले ही वे अपने को संत कहे भारतीय के स्थान पर हिंदू बन रहे हैं तो उन्हें याद रखना चाहिए हिसाब कर्मों का होता है धर्म का नहीं। सनातन धर्म का कर्म फल सिद्धांत यही कहता है। 

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