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कांग्रेस में सब बड़े नेताओं के सुर अचानक क्यों बदले... ?
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समाचार -
बिलासपुर, 19 जनवरी 2023। चल रहे सप्ताह में बिलासपुर की राजनीतिक गतिविधियां तेज हैं। कांग्रेस के संदर्भ में देखा जाए तो, प्रदेश के मुखिया का जिले में रहना ही सबसे बड़ी राजनीतिक गतिविधि है। ध्यान देने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ के 3 बड़े कांग्रेसी नेताओं के सुर एक के बाद एक दुरुस्त हो गए। पहला मुख्यमंत्री का सुर 3 दिन पहले का बयान है 30 विधायकों की टिकट खतरे में है उनका परफॉर्मेंस ठीक नहीं है लास्ट मौका है अपने क्षेत्र में सक्रिय होने का, हो जाएं अब कह रहे हैं मैं तो चाहता हूं सब विधायक जीत जाएं अर्थ यह है कि सब को टिकट दे रहे हैं आगे उन्होंने कहा जो विधायक परफार्मेंस में खड़े नहीं है उनका निर्णय हाईकमान करें लगता है एक साथ 30 विधायकों की टिकट काटने की हिम्मत कांग्रेस के सीएम में नहीं या यह भी डर सताता है जब टिकट देने की बारी आएगी तब आएगी अभी तो विधानसभा के 2 सत्रह बाकी हैं यदि 30 विधायक एक साथ असंतुष्ट पाले में खड़े हो गए तो कहीं सरकार पर ही ? ना लग जाए..... । कल ही स्वास्थ्य मंत्री ने अपने ही मुख्यमंत्री को 10 में से 7 नंबर दे दिए 70% अंकों के साथ मुख्यमंत्री पास हो गए। ये वहीं स्वास्थ्य मंत्री हैं जिन्होंने पंचायत विभाग से इस्तीफा दे दिया था कुछ कारण रहा होगा तभी तो इस्तीफा दिया था यदि नहीं दिया होता तो सीएम को 10 में से 10 अंक दे देते क्या. ....। उन्होंने यह भी कहा कि अलग राजनीतिक दल बनाने में बहुत पैसा लगता है 4 साल पूर्व राजनीतिक हलकों में इस बात की खूब चर्चा होती थी कि आर्थिक संकट से जूझ रहे कांग्रेस के कितने प्रत्याशियों को बाबा ने फाइनेंस किया है तो वे विधायक किसकी तरफ खड़े होंगे। तीसरा बयान गृहमंत्री पीडब्लूडी मिनिस्टर साहू जी का है उन्होंने भी बाबा के प्रति अपनी तलखी का स्वाद बदल लिया है अब पूर्व की अपेक्षा कड़वाहट कम है पहले कहते थे एक के चुनाव न लड़ने के निर्णय के बाद टिकट के लिए दर्जनों नए नाम आ जाते हैं फिर कहा मैं भी सोच लूंगा चुनाव में उतरने ना उतरने को लेकर अब कहते हैं सरकार ने अपना घोषणा पत्र दमदारी के साथ पूरा किया है । किसान से लेकर मध्यमवर्ग तक खुश है सरकार फिर से रिपीट होगी। लगता है छत्तीसगढ़ की प्रभारी ने फरवरी में होने वाले अधिवेशन को लेकर निर्देश दे दिए हैं यही वजह है कि बड़े नेताओं के बीच बयानों में सबसे पहले नरमी आई है और दिखाने का प्रयास है कि हाथ से हाथ जोड़ो कार्यक्रम के साथ दिल भी मिल रहे हैं। इस बीच तखतपुर में राजनैतिक गतिविधियां तेज रही लोग कारण खोज रहे हैं कि जिले में सबसे पहले मुख्यमंत्री ने तखतपुर विधानसभा क्षेत्र ही क्यों चुना कुछ का कहना है एससी मतदाताओं की तखतपुर विधायक से नाराजगी की चिंगारी रायपुर तक पहुंची है इसलिए इस वर्ग के मतदाताओं का वजन कांग्रेस पर नुकसानदायक ना हो, के कारण सीएम साहब ने तखतपुर को इतना समय दिया पर ऐसा लगता नहीं है। कांग्रेस की ओर से सतनामी समाज के प्रमुखों के साथ औपचारिक बातचीत का कोई संकेत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष पता नहीं चला। मुख्यमंत्री ने स्वल्पाहार के लिए भी जो स्थान चुना वह सोशल इंजीनियरिंग के समीकरणों पर कोई नई बात का इशारा नहीं करता मेहमान नवाजी चुनी भी तो स्वजातीय बंधु की । क्या अब कुर्मी वोटों पर भी भरोसा डोल रहा है वैसे भी जानकार बताते हैं ओबीसी वोटर थोक में किसी एक राजनीतिक दल को मतदान नहीं करता पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा दोनों एसटी और एससी वोटर को नाराज करके केवल ओबीसी ओबीसी खेल रहे हैं। चौथा तखतपुर में इस बार कांग्रेस से एक ऐसा चेहरा भी जोर शोर से बाहर आया है जो पहले छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुका है और बड़ी मात्रा में वोट बैंक रखता है इसे दबाव की राजनीति के लिहाज से समझा जा सकता है। 18 तारीख को ही सरकार की ओर से वह सूची जारी हो गई जिसमें गणतंत्र दिवस के दिन कौन कहां ध्वजारोहण करेगा के नाम है। इस बार बिलासपुर से संसदीय सचिव को कहीं ध्वजारोहण का आदेश नहीं हुआ बिलासपुर में संसदीय सचिव विकास उपाध्याय गणतंत्र दिवस की परेड में आएंगे इसे जिले के लोग जिले की राजनीतिक कद कटौती के रूप में लेते हैं और कुछ लोग यह भी सोचते हैं ठीक है जिले में किसी का राजनीतिक कद इतना ऊपर न हो कि आने वाले समय में मुकाबला करना कठिन हो जाए।