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देह व्यापार का कानून पढ़ते, फिर भांडा फोड़ जैसी हेडिंग नहीं लगाते

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बिलासपुर, 9 अक्टूबर 2024। 
भारतीय संविधान में गरिमापूर्ण प्रतिष्ठित जीवन की बात प्रस्तावना में कहीं गई है। यही कारण है कि देश में अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 बना। इसमें समय समय पर संशोधन जी हुए। स्थान, कृत्य, पुरुष की भूमिका, ग्राहक दलाल की भूमिका, स्थान की परिभाषा स्थान के मालिक को आरोपी बनाना, सार्वजनिक स्थान पर किए जा रहे देह व्यापार को परिभाषित करना सब कुछ है। पूरे व्यापार में वेश्यावृत्ति की परिभाषा है पर वैश्या की कोई परिभाषा नहीं।
 पीटा एक्ट नगरी निकाय की भौगोलिक सीमा के अंदर ही संभव है। पत्रकारिता के उत्साही खबरची देह व्यापार संबंधी खबरों को चटकारे ढंग से लिखने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही लिख देते हैं। कल बिलासपुर मोपका क्षेत्र के एक निजी आवास जिसे किराए पर दिया गया था वहां से आधा दर्जन से अधिक युवतियों को निकला गया। युवक या पुरुष उनके बीच एक ही था लिहाजा वेश्यावृत्ति का मामला बनता ही नहीं था। यही कारण है कि अंत में पुलिस ने लड़कियों पर 151 दर्ज कर मुंहचलका दिया। पर खबरचीयो को तो अलग-अलग राज्य की युवतियां एक ही स्थान पर मिलने से उसे अंतर राज्य दे व्यापार का भंडाफोड़ खाने में संकोच ही नहीं लगा। 
देह व्यापार पर कार्यवाही करना और उसे सिद्ध करके सजा दिलाना दो अलग-अलग काम है। पहले काम आसान है दूसरा बेहद कठिन यही कारण है कि एकल अनैतिक व्यापार और संगठित अनैतिक व्यापार आमतौर पर सार्वजनिक स्थान, होटल, पार्लर, स्पा सेंटर से चलते रहते हैं। स्थान परिवर्तन इस धंधे की सफलता का महत्वपूर्ण अध्याय है। इस व्यापार के लिए नगद या अन्य तरीके के प्रलोभन उपहार सब कुछ की परिभाषाएं हैं। पर उसे स्तर की जांच और कार्यवाही कठिन है। 
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पूरे राज्य के बड़े शहरों में पैसा आया उद्योग और नए व्यापार और प्रतिष्ठान खुले पूर्व में जो धंधा सड़क छाप था धीरे-धीरे उसने पूरी तरह संगठित व्यापार का आकार लिया। सत्ता के गलियारे से लेकर जेल तक कॉरपोरेट ऑफिस से लेकर पान की दुकान तक यह व्यापार चल रहा है और अब तो दिल्ली में काम करने वाली यूक्रेन, कजाकिस्तान जैसे स्थानों की लड़कियां बी ग्रेड शहर तक पहुंच रही है। करण स्किन के धंधे में स्किल की जरूरत है। भाषा मायने नहीं रखती, सबसे बड़ा सवाल डिडेन की गई युवतियों को सुधार गृह में ले जाना है। यदि सुधार गृह में भी यही धंधा चल रहा है तो फिर क्या रास्ता बचता है। बिलासपुर में सरकंडा थाने क्षेत्र में स्थित एनजीओ संचालित सुधार गृह का मामला बड़ा उदाहरण है।