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दूध और गैस को भी यह सरकार छीन लेना चाहती है यह कैसा अमृत काल है..... शैलेश पांडे

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समाचार -
बिलासपुर, 2 मार्च 2023। घरेलू और व्यवसायीक गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने के बाद बढ़ती महंगाई और देश की अर्थव्यवस्था पर बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे से लंबी चर्चा हुई। उन्होंने देश की आर्थिकी पर एक साथ कई विषयों को जोड़ा उन्होंने कहा कि मात्र 10 वर्षों में दूध के दाम में जो बढ़ोतरी हुई है उसका यह प्रभाव पड़ा है कि 5 करोड़ लोगों की पहुंच से दूध बाहर हो चुका है। अर्थव्यवस्था स्लोगन से नहीं चलती जीएसटी कलेक्शन लगातार बढ़ रहा है इससे तरक्की को नहीं देखा जा सकता ना ही यह समझा जा सकता है कि आम आदमी रोजगार से जुड़ा हुआ है। अब तो यह कहने की स्थिति आ गई है कि वह दो बेर खाती थी दो बेर खाती है गैस सिलेंडर के दाम जिस तरह से 2014 के बाद प्रथम 5 साल में 30% और दूसरे 5 साल में 45% बढ़ोतरी हुई है। इसने किलो में गैस बेचने का दो नंबर का धंधा खड़ा कर दिया है शहरी क्षेत्रों में जिन परिवारों की हैसियत 1000 से ऊपर का सिलेंडर खरीदने का नहीं है वे लोग अब अपनी जेब के मुताबिक किलो में जो खरीदते हैं। दो नंबर का यह रिफिलिंग का धंधा ₹100 किलो से ऊपर चल रहा है। अर्थव्यवस्था को यदि जीडीपी से समझें तो सरकारी आंकड़े स्वयं कह रहे हैं 4.4 की ग्रोथ रेट और यह ग्रोथ रेट अक्टूबर से दिसंबर माह के बीच की है जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था में गोल्डन तिमाही माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म के सभी बड़े त्यौहार ईसाइयों का क्रिसमस और नए साल का जश्न इसी में शामिल हो जाता है। एक साहित्यकार ने तो इस व्यवस्था पर कमेंट करते हुए लिखा वज़ीरो, अफसरों, पागलों को छोड़ कौन हंसता है हमारे देश में भारतीय जनता पार्टी के नेता तो बढ़ती महंगाई पर यह भी कह देते हैं रोटी नहीं मिल रही तो पराठा खा लो वित्त मंत्री तो कई वस्तुओं के दाम बढ़ने पर बड़ी आसानी से कह चुकी है स्वास्थ्य के लिए जरूरी तो नहीं है यह खाना। देश में महंगाई के और 3 आंकड़े हैं। खाद्य तेल में मोदी शासन के प्रथम 5 वर्ष में 23% बढ़ोतरी हुई और द्वितीय 5 वर्ष में अभी तक 33% बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह दूध के दामों में पहले 5 साल 23% और दूसरे 5 साल में अभी तक 25%, ट्रांसपोर्टिंग के क्षेत्र में पहले 5 सालों में 1% की बढ़ोतरी हुई थी तो दूसरे 5 साल में महंगाई 24 से 25% बढ़ गई है। इसी तरह कपड़ों में दूसरे 5 साल में 14 से 15% कपड़े महंगे हो चुके हैं। 50 करोड़ की जनसंख्या ₹6000 से नीचे की कमाई वाली है 50 करोड़ की जनसंख्या 8000 से ऊपर की कमाई वाली है मात्र 1.5 करोड़ लोग 40000 प्लस की कमाई वाले हैं। ऐसे में बढ़ती महंगाई का मुकाबला आम जनता की पहुंच से बाहर है। नौकरियां पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गई है। 2014 में पीएसयू में जहां 1240000 लोग नौकरी करते थे 17 में यह घटकर 11 लाख 30 हजार हो गए अब 2022 में केवल 920000 लोग पीएसयू में काम कर रहे हैं इस तरह 17 से 22 के बीच ही 320000 लोगों की नौकरियां चली गई। पीएसयू के क्षेत्र में संविदा में नौकरी करने वालों की संख्या 328000 हो गई कहने का अर्थ यह है कि पक्की स्थाई नौकरियां खत्म करके संविदा पर लोगों को काम दिया जाता है सरकारी क्षेत्र के बैंकों में 2014 में 1150000 लोग नौकरी करते थे तो इस समय 850000 हो चुके हैं मतलब 300000 लोग नौकरी से बाहर हो चुके हैं। इतने सबके बावजूद 5 किलो अनाज को अचीवमेंट बताया जाता है। 2014 में जहां 26 करोड़ 8000000 लोग सस्ते दर पर अनाज पाते थे इस समय इन लोगों की संख्या 41 करोड हो चुकी है तब देश को उन्नति करता हुआ और आजादी के अमृत काल का जश्न मनाते हुए कौन कह सकता है तभी तो यह लाइन फिर से याद आती है। सारी दुनिया भारत की ओर देख रही है।