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वास्तविकता से आंख मूंद लेना केवल शुतुरमुर्ग ही कर सकता है .... निलेश

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समाचार -
बिलासपुर, 2 फरवरी 2023। विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वित्त मंत्री जब 1 तारीख को बजट प्रस्तुत कर रही थी उसके 24 घंटे के भीतर ही देश की इकोनॉमी एक सीढ़ी नीचे आ गई अब हम फ्रांस के बाद खड़े हैं, और ब्रिटेन के ऊपर खड़े हैं । यदि सरकार ने शीघ्र ही कदम नहीं उठाए तो निश्चित तौर पर 1 हफ्ते का समय नहीं लगेगा और हमारे देश की इकोनॉमी ब्रिटेन के बाद पहुंच जाएगी कारण यही है कि हमारे शासक वास्तविकता से आंख मूंदकर योजना पेश करते हैं तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन केवल उतना ही बताया जाता है जितने में उन्हें लाभ नजर आता है। इस बजट के भाषण में बार- बार यह कहा जा रहा था कि आवंटित राशि 2013 से कितना गुना बढ़ गई जबकि तुलना पिछले वित्तीय वर्ष से होनी थी। ऐसे में कोई नहीं बता रहा कि पिछले बजट में घोषित विश्वविद्यालय स्मार्ट सिटी अब कहां गायब हो गए 157 मेडिकल कॉलेज में से कितने बने किलो का लोकार्पण हुआ कि अचानक 157 नर्सिंग कॉलेज की घोषणा कर दी गई जबकि पिछले बजट की तुलना में हेल्थ का बजट कम हो गया पिछले वर्ष 2.7% था इस बार 2.4% है, कृषि जो हमारी अर्थव्यवस्था की देन है उसमें भी पिछले वर्ष खर्च 3.84% था इस बार 3.20% है जबकि देश में 65% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है और जब महानगरों से रोजगार के अवसर खत्म हुए तब इसी कृषि व्यवस्था ने लोगों के घर चलाएं ऐसे में कृषि क्षेत्र की अनदेखी से ग्रामीण जनता नाराज है। 8 साल के शासन में सरकार को अब पता चल गया कि केवल निजी क्षेत्र के बुते अधोसंरचना निर्माण नहीं हो सकती नाही रोजगार पैदा किया जा सकता है तभी तो अधोसंरचना क्षेत्र में फिर से सरकार ध्यान दे रही है यह भी हो सकता है कि यह केवल चुनावी जुमले बाजी हो। एनसीपी के प्रदेश प्रवक्ता ने 24 एचएमबीसी के साथ बजट पर चर्चा करते हुए कहा कि देश में प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 97 हजार बताई जा रही है यह सुनकर बहुत अच्छा लगता है पर इस बात का जवाब कोई नहीं देता कि जिस देश में 1 लाख 97 हजार प्रति व्यक्ति सालाना आय है वहां पर करोड़ों करोड़ों लोगों को मुफ्त का राशन क्यों दिया जाता है। एक तरफ केंद्र सरकार सब्सिडी और रेवड़ी को भाषण में व्यंग्यात्मक बताती है दूसरी ओर अगले 12 महीने के लिए राशन देकर ताली पीटवाती है । देश के भीतर रोजगार देने का कानून है जिसे मनरेगा कहा जाता है उसका बजट 60 हजार करोड रुपए है प्रशासनिक खर्च काट दे तो मजदूरी भुगतान के लिए 42000 करोड रुपए बचता है इससे 100 दिन का रोजगार नहीं दिया जा सकता जो बजट है उससे पता चलता है कि 229 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी से केवल 48 कार्य दिवस ही दिए जा सकते हैं इस तरह से एक घर को पूरे साल में ₹10942 प्राप्त होता है अर्थात ₹916 प्रतिमाह तब सरकार बताए कि 1 लाख 97 हजार प्रति व्यक्ति आय किसकी है और यह कितने लोगों को प्राप्त है। भारत में बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र की है 29 करोड़ की आबादी ने तो रोजगार खोजना ही बंद कर दिया है। देश में टैक्सपेयर की जनसंख्या 5 करोड़ है शेष जनता से सरकार जब आंख मूंद देती है तो उसे शुतुरमुर्ग ही कहा जाएगा। मध्यमवर्ग को टैक्स स्लैब में छूट नहीं चाहिए उसका जी का जंजाल तो ईएमआई है जो कभी भी बढ़ जाती है या तो कर्ज की अवधि बड़े या ईएमआई कटना तो मध्यम वर्ग को ही है । सरकार तो केवल कर्ज माफी उद्योगपतियों का करती है बाकी मध्यमवर्ग का तो गला ही काटती है भले ही चुनाव का समय देखकर। टैक्स स्लैब में राहत दे रही है पर प्रतिदिन जो सैकड़ों लोग देश छोड़कर बेहतर भविष्य के लिए विदेश जा रहे हैं उन्हें रोकने का कोई प्लान सरकार के पास नहीं है शायद इन लोगों को इसलिए जाने दिया जाता है कि जब हमारे नेता विदेश जाएं तो यही आम आदमी वहां भी ताली पीटने के काम आएगा। एनसीपी के नेता ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार जिस तरह से राज्य सरकारों के हितों पर कुल्हाड़ी चला रही है आने वाले समय में राज्यों को अपने आर्थिक संसाधनों के लिए संघवाद से किनारा करना मजबूरी हो जाएगा।