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हमें कुछ ऐसा समझ आया राजदंड

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समाचार -
बिलासपुर, 29 मई 2023। हम सरकारी स्कूल में पढ़े, उस समय भी निजी स्कूलों में विद्यार्थी को शारीरिक दंड की अनुमति नहीं थी क्योंकि वह फीस देता था लिहाजा उसे अपने आप उपभोक्ता का दर्जा प्राप्त था और जो फीस दे रहा है या जिससे फीस मिल रही है उसे शारीरिक दंड देने की हिम्मत किसी गुरुजी में नहीं थी चाहे वह गुरुजी मेल हो या फीमेल पर सरकारी स्कूल के कई गुरुजी जब कभी भी कक्षा में आते थे अपने साथ एक छड़ी जरूर लाते थे कुछ गुरुजी तो आते ही डायलॉग भी देते थे । छड़ी पड़े धम धम विद्या आवे छम छम प्रश्न का उत्तर ना देने पर एक या दो छड़ी मारने के बाद यह पूछने की परंपरा भी थी कि कुछ याद आया ऐसा लगता था पिटने के बाद बुद्धि जागृत हो जाती है या याददाश्त शारीरिक दंड से तेज हो जाती है। देश का प्रधानमंत्री और उसे छड़ी देने वाले कह रहे हैं कि यह छढ़ी कर्तव्य बोध कराएगी हमारी संविधान सभा ने जो लिखित संविधान दिया उसके आर्टिकल हमें कर्तव्य बोध नहीं कराते छड़ी करायेगी। मुझे लगता है पूरा मामला नोटबंदी के बाद उस भाषण से शुरू होता है जब परिधान मंत्री ने देश की जनता से 50 दिन का समय मांगा था और फिर किसी भी चौराहे पर मिल लेने का वचन दिया था उसके बाद जाने कितने 50 दिन बीत गए ना चौराहा आ रहा है ना परिधान मंत्री ऐसे में अब पहले झंडा हाथ में ले लिया गया है जनता को यह बताया जा रहा है कि राजदंड तुम्हारे नहीं मेरे पास हैं और अब मुझे किसी चौराहे पर बुलाया नहीं जा सकता। देश की जनता अपने तमाम अंगों को सहलाले क्योंकि प्रधान सेवक अब दंडाधिकारी बन गया है और उसमें ईश्वरी यह गुण आ गए हैं। कई भक्त तो कुछ वर्षों से उनमें कल्कि अवतार दिखाई देने का ज्ञान दे ही रहे हैं ऐसे में यह डंडा उसी ओर इशारा कर रहा है। परिधान मंत्री इन दिनों प्रधान सेवक कम पाताल भैरवी का वह कैरेक्टर का आभास कराते हैं जिसे कादर खान ने दिया था। 

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