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बीजेपी आई है दूध मलाई लाई है पर समझे यह मलाई टिशू पेपर से बनी है

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समाचार -
बिलासपुर, 5 अप्रेल 2023 । स्कूली शिक्षा और विद्यालय शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय के बीच अद्भुत सामंजस्य को देखें एनसीईआरटी ने इतिहास, राजनीति शास्त्र, हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रमों से बहुत से पाठ हटा दिए और दूसरी खबर गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के छात्र गुलशन नंदा, वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढ़ेंगे। समाचार शुरू करें उसके पहले एक लतीफा सुने। छात्र ने शिक्षक से पूछा शिवाजी किससे लड़े, शिक्षक ने जवाब दिया तलवार से छात्र ने फिर पूछा किससे लड़े शिक्षक ने फिर कहा वीरता से लड़े, छात्र ने फिर पूछा सर आप मुझे बता दें शिवाजी किससे लड़े शिक्षक ने फिर जवाब दिया जुल्म के खिलाफ लड़े। असल में आप इतिहास को समग्रता में ही पढ़ सकते हैं मुगल को हटा देंगे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप और कई योद्धाओं बारे में कैसे समझेंगे। राजनीति शास्त्र की किताब से शीत युद्ध को हटा देंगे तो नेहरू के निर्गुण आंदोलन पर कैसे पड़ेंगे और नहीं पढ़ेंगे तो भारत- चीन युद्ध में भारत की हार के लिए नेहरू को गाली कैसे देंगे। एनसीईआरटी के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि कोविड के कारण बस्ते का बोझ कम करना था इसलिए पाठ्यक्रम को दोबारा बनाया जा रहा है। असल में अब ज्ञान प्राप्त करने का एक सहज सूत्र बताया जा रहा है की श्रद्धावान को ही ज्ञान का लाभ प्राप्त होगा। ऐसे निसंदेह और उससे बनने वाली जिज्ञासा समाप्त हो जाएगी ऐसा समाज निर्माण हमें और आपको किस दिशा में ले जाएगा। बीजेपी आई है दूध मलाई लाई है ऐसा नारा सुनने में अच्छा लगता है पर बीजेपी के आने से ₹450 का गैस ₹1200 से अधिक का हो गया है इसे समझे बिना यह नारा समझ ही नहीं आ सकता बीजेपी आई है दूध मलाई लाई है। पाठ्यक्रमों में यदि आप मनमर्जी चलाएंगे तो मुगल सिख संबंधों के बीच आदिवासी क्षेत्र के बिरसा मुंडा को कैसे समझेंगे। इतिहास को उबले अंडे में सफेद और पीला भाग हटाकर नहीं समझा जा सकता यही इतिहास हमें बताता है कि दाराशिकोह और औरंगजेब के चरित्र में क्या अंतर था। जब भारतीय शासक इंडोनेशिया तक जाकर सत्ता के सूत्र अपने हाथ में लेता है तो हम खुश होते हैं और उसे पढ़ना चाहते हैं जब हमारे शासन के सूत्र अफगान शासक के पास चले जाते हैं तो हम उस अध्याय को नहीं पड़ेंगे कहने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। आप राजनीति के पाठ से जन आंदोलन का उदय पाठ्यक्रम हटा देंगे तब लोकमान्य तिलक, स्वाधीनता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है वह पड़ेंगे और आर्य का भारत का प्रवेश जो तिलक का ही सिद्धांत है को कैसे हटा देंगे कुल मिलाकर पाठ्यक्रम कम कर के बस्ते का बोझ कम करने का तर्क थोथा है। बगैर व्यापक विमर्श के एक सनक के आधार पर पाठ्यक्रमों में बदलाव समाज निर्माण में व्यवधान पैदा करेगा जब आप स्कूली शिक्षा में यह रुख अपनाएंगे तो गोरखपुर विश्वविद्यालय में उपन्यासकार गुलशन नंदा और वेद प्रकाश शर्मा को पढ़ाने योग्य, पढ़ने योग्य कैसे मानेंगे। देश की बहुत बड़ी आबादी ने इन जैसे कई लेखकों को पढ़ा और यह किताबें बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन पर उपलब्ध होती थी तब इन्हें कौन पढ़ता था यह हमें पता है इन किताबों को कभी भी हिंदी साहित्य के अच्छे पाठक वर्ग ने अपने हाथों में स्थान नहीं दिया। विश्वविद्यालय गुलशन नंदा को किस परिपेक्ष में पढ़ाने वाला है यह बात चिंता में डालती है भारतीय समकालीन दर्शन में नेमीचंद जैन, आचार्य रजनीश, महर्षि महेश योगी जैसे चिंतकों को स्थान नहीं मिल पाया पर गुलशन नंदा को मिल गया इसे बदलते समाज की वह मलाई कहा जा सकता है जो टिशू पेपर से बनती है।