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बाहर से आए अतिथि का सम्मान है, पर स्थानीय उपेक्षित क्यों.....

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समाचार :-
बिलासपुर, 19 सितंबर 2022। हम भी मानते हैं कि साहित्य को भौगोलिक सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता फिर भी जिस शहर में जिस राज्य में उसी की मातृभूमि पर जन्म लेने वाले किसी साहित्यकार को याद किया जा रहा हो तो उस शहर के, उस राज्य के साहित्यकारों को कवियों को, कहानीकारों को अपनी रचना प्रस्तुत करने का मौका मिलना चाहिए अन्यथा ऐसा लगता है कि जिस साहित्यकार कवि श्रीकांत वर्मा को शहर याद कर रहा है। राज्य सरकार का सांस्कृतिक विभाग याद कर रहा है वहां साहित्य समाप्त हो गया है। आज 19 सितंबर 2022 है श्रीकांत वर्मा सृजन संवाद का दूसरा दिन है। तीन दिवसीय कार्यक्रम में आमंत्रित साहित्यकारों का हम नाम का उल्लेख नहीं करेंगे लेकिन वे जिस क्षेत्र से आए हैं उसका उल्लेख जरूर करेंगे। भोपाल, गोरखपुर, नागपुर, इंदौर, कोच्चि, दिल्ली, जबलपुर, रामानुजगंज, रामपुर, मुंबई शहरों से अतिथि आए हैं। इस पूरी सूची में छत्तीसगढ़ के दर्शन वीरले ही होते हैं इस संदर्भ में जब हमने कुछ स्थानीय साहित्यकारों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि सरकार की नीति कुछ ऐसी है कि आप तो वरिष्ठ हो चुके हैं अब नए लोगों को मौका दें लिहाजा वरिष्ठ लोगों के लिखे को पढ़ने की इजाजत नहीं हुई और सुनने के लिए वे आए नहीं, बड़ा मौका है जब बिलासपुर शहर में हिंदी साहित्य को लेकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति विभाग ने प्रयास किया इस शहर में 1-2 नहीं 3 विश्वविद्यालय हैं दो सरकारी हैं और एक निजी हैं हिंदी साहित्य को विषय के रूप में वर्षों से पढ़ाने वाले कॉलेज है पर सभागार में ना तो श्रोता है और ना ही हिंदी साहित्य के छात्र यदि संस्कृति विभाग तीनों विश्वविद्यालय के हिंदी, दर्शन, संस्कृत, मनोविज्ञान विभागों से संपर्क करता तो बड़ी संख्या में यहां ना केवल कान उपस्थित होते बल्कि मस्तिष्क भी आते पर यह हो ना सका और अब यह आलम है कि लोग साहित्यकार, कवि अपने सृजन को बता तो रहे हैं पर सामने खालीपन ज्यादा है।